शिक्षक जिनके लिए पढ़ाना एक धर्म है

एक काबिल गुरु बच्चों को जीवन में सही राह दिखा सकता है। पढ़िए ऐसे ही 9 गुरुओं की कहानी, जिनका जुनून बस इतना है कि कोई शिक्षा से महरूम न रहे।
  •  गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में फिजिक्स लेक्चरर संदीप त्रिपाठी ने टीचिंग को अपनाया है। कानपुर निवासी संदीप ने एचसीए, पुलिस, आर्मी, बैंक सहित 18 नौकरियों में चयन होने के बाद भी ज्वाइन नहीं किया। त्रिपाठी का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में भी नाम दर्ज है। 2014 में हरियाणा शिक्षा विभाग में बतौर लेक्चरर नियुक्ति से पहले इन्होंने चंडीगढ़ के डीएवी स्कूल में दस वर्षों तक फिजिक्स विषय पढ़ाया।
  •  डीएवी कॉलेज के कॉमर्स डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. पूर्णिमा सहगल ने पंजाब यूनिवर्सिटी में लगातार चार गोल्ड मेडल जीतने का रिकार्ड बनाया है। देश विदेश में नौकरी के अच्छे प्रस्ताव भी मिले। डॉ. पूर्णिमा ने टीचिंग को ही प्रोफेशन बनाया। डॉ. सहगल ने 10वीं, 12वीं के अलावा बीकॉम, बीकॉम (आनर्स), एमकॉम, एमबीए में गोल्ड मेडल हासिल किया है।
  • ह्रदयेश मदान करीब 15 वर्षों से युवाओं को आईआईएम में दाखिले के लिए एमबीए की ट्रेनिंग दे रहे हैं। मदान ने मेकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है। इंजीनियरिंग के बाद उन्हें इंडस्ट्री में काफी अच्छा पैकेज मिला। कुछ समय नौकरी के बाद उन्होंने टीचिंग को प्रोफेशन बना लिया। एमबीए की डिग्री हासिल की। मदान बच्चों को कॅरियर के बारे में जागरूक करने के लिए हर साल सेमिनार और वर्कशॉप आयोजित करते हैं। वह कहते हैं कि युवाओं को पढ़ाकर उन्हें सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। मदान बुल्स आई के रीजनल डायरेक्टर हैं।
  • गवर्नमेंट मॉडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में जेबीटी टीचर राकेश दहिया की जिंदगी का मकसद ही बच्चों को शिक्षित करना है। दहिया सिर्फ किताबी पढ़ाई नहीं कराते। बच्चों को पर्यावरण के प्रति और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरूक भी करते हैं। हरियाणा निवासी दहिया बताते हैं कि उनके परिवार के लगभग सभी सदस्य डिफेंस या पुलिस में कार्यरत हैं। लेकिन उन्होंने टीचर बनने का फैसला लिया। दहिया को एनएसएस में बेहतर कार्यों के लिए 2014 में इंदिरा गांधी नेशनल अवार्ड के अलावा 2013 में स्टेट अवॉर्ड और बेस्ट इको क्लब इंचार्ज का सम्मान मिल चुका है।
  • GLA यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ अप्लाइड साइंसेस एंड ह्यूमैनिटीज़ के डायरेक्टर प्रोफेसर अनूप कुमार गुप्ता का कहना है कि उनकी ज़िंदगी का मकसद है कि एक शिक्षक, प्रबंधक और एक मनुष्य होने के नाते उनके जरिए सभी को शिक्षा प्राप्त हो, समाज के हर वर्ग के पास शिक्षा पहुंचे। प्रोफेसर गुप्ता ने शिक्षक के तौर पर वर्ष 1993 में डिपार्टमेंट ऑफ ह्यूमैनिटीज़ और सोशल साइंसेस से जुड़कर शुरू किया था जो सिलसिला 2010 में GLA यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर तक चला आया। प्रोफेसर गुप्ता ने GLA यूनिवर्सिटी में ई-गवर्नेंस लागू किया और अब नेशनल प्रोग्राम ऑन टेक्नोलॉजी एन्हांस्ड लर्निंग लागू करने की प्रक्रिया में हैं।

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