बार बार बमियाल

पांच महीने में यह दूसरा मौका है जब जम्मू-कश्मीर से सटे पंजाब के इलाके में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने घुसपैठ की है। गत जुलाई में दीनानगर आतंकी हमले की जांच में भी यह सामने आया था कि घुसपैठ बमियाल के पास उज्ज दरिया से सटे रास्ते से हुई।
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इस बार भी आतंकवादियों की उपस्थिति की पहली जानकारी नरौट जैमल सिंह के पास बमियाल के रास्ते पर ही मिलती है। हालांकि अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है, मगर यह माना जा रहा है कि घुसपैठ के लिए वही पुराना रास्ता इस्तेमाल किया गया। यह संभावना इसलिए भी वजन रखती है क्योंकि पंजाब में यह इलाका ऐसा है जहां कंटीली बाड़ नहीं है। खासकर जम्मू-कश्मीर से सटे इलाके में। हालांकि यहां बीएसएफ की चौकी और नाइट विजन कैमरे लगे हैं। दूसरी ओर पाकिस्तान में इखलासपुर का जंगल है, जहां घुसपैठिये आतंकवादी दिनभर साजोसामान के साथ छुपे रह सकते हैं। अंधेरे और धुंध का फायदा उठाते हुए घुसपैठ कर सकते हैं। तस्करों के लिए भी यह मुफीद इलाका माना जाता है। हालांकि बीएसएफ ने इस इलाके से घुसपैठ की घटना होने से अभी तक इंकार ही किया है।
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यह सवाल उठ रहा है कि बार बार बमियाल ही क्यों? क्यों नहीं हमने कोई सबक लिया। जुलाई में हुई घुसपैठ के बाद इस जगह की बाड़बंदी और नदी धारा को इलैक्ट्रिक करेंट से सुरक्षित बनाने पर ध्यान नहीं दिया। पिछले साल जुलाई में हुई घुसपैठ के बाद भी उस रास्ते को खुला छोड़े रखना एक बड़ी सुरक्षा चूक है। इसका लाभ पाकिस्तान ने उठाया है।
लंबे समय से आतंकवाद पाकिस्तान की विदेश नीति का हिस्सा है। वह दो चेहरे बनाकर भारत को छल रहा है। नवाज शरीफ उसका कूटनीतिक चेहरा हैं। सेना और आईएसआई ही विदेश के मोर्चे पर मुख्य एग्जिक्यूटिव चेहरा हैं। कूटनीतिक चेहरे निरीह दर्शाने में ही पाकिस्तान का लाभ है। अगर पाकिस्तान को भारत के साथ बातचीत की मेज पर बैठना पड़ा और बातचीत सही दिशा में चलती रहे तो वहां के हुकमरानों को कई ठोस कदम उठाने होंगे। वहां चल रहे आतंकी शिविर बंद करने होंगे। दाऊद, सईद, नीटा, जफ्फरवाल जैसे तमाम सरगनाओं को भारत को सौंपना होगा। इसलिए हर बार बातचीत को बीच में ही डीरेल किया जाता है।
पिछला प्रयास भी इसका उदाहरण है। बातचीत का दिन तय हो गया था मगर ऐन मौके पर हुर्रियत को पक्ष बनाने की बात कहकर पाकिस्तान की सरकार ने इसे पटरी से उतार दिया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव लगातार बना हुआ है, इसलिए पाकिस्तान सरकार बार बार उसी बहाने से नहीं बच सकती। इसलिए इसबार सेना और आईएसआई ने पठानकोट एयरबेस पर हमला कर एक नई चाल चली है।
हमें पाकिस्तान की दोहरी नीति के भ्रम में फंसने से बचना चाहिए। हमें इस सत्य को आधार मानना चाहिए कि लश्कर और जैश कोई आतंकी संगठन न होकर पाकिस्तान के भाड़े के सैनिक है। पाकिस्तानी सेना इनके लिए प्रशिक्षण शिविर चलाती है। आईएसआई इन्हें भारत पर हमलों के लिए जरूरी जानकारियां उपलब्ध कराती है।
अगर हम इन्हें सिर्फ आतंकवादी हमला कहते हैं तो पाकिस्तान को इसकी नैतिक जिम्मेदारी से भी मुक्त कर देते हैं। यह पूरी तरह पाकिस्तान प्रायोज‌ित हमला है। भारत जब भी पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाता है, हमारे देश की पीठ में पाकिस्तान छुरा घोंपता है। पाक‌िस्तान के हुक्मरानों का विश्वास दोस्ती में नहीं बंदूक की गोली में है।
बंदूकें बात नहीं करतीं
बंदूकें बात नहीं करने देतीं
और
बात ही बात में निकल आती हैं बंदूकें।

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